आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हो रही तीव्र प्रगति ने हमारे जीवन को अभूतपूर्व तरीकों से कैसे प्रभावित किया है? कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग जैसी विकसित तकनीकों ने अनेक अवसरों को जन्म दिया है। इन्हीं में से एक “डीपफेक” नामक तकनीक भी है। यह तकनीक इतनी प्रभावशाली है कि इसके उपयोग से तैयार की गई तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो असली और नकली के बीच के अंतर को धुंधला कर देती हैं। यह तकनीक जहाँ एक ओर रचनात्मकता और मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला सकती है, वहीं दूसरी ओर यह झूठ, धोखा और भ्रम फैलाने का एक खतरनाक माध्यम भी बन सकती है। इस लेख के माध्यम से हम डीपफेक तकनीक के दोनों पहलुओं को जैसे कि खतरे और संभावनाओं के बारे में विस्तार से समझेंगे।
मुख्य बिंदु:
(1) “डीपफेक” तकनीक से तैयार की गई तस्वीरें, ऑडियो और वीडियो में असली और नकली के अंतर को धुंधला कर देती हैं।
(2) इस प्रकार की लर्निंग तकनीकों ने अनेक अवसरों को जन्म दिया है। बहुत कम समय में किसी भी प्रकार की फोटो, ऑडियो और वीडियो बना सकते हैं।
(3) यह तकनीक यदि रचनात्मकता और मनोरंजन की दुनिया में क्रांति ला सकती है तो दूसरी ओर यह झूठ, धोखा और भ्रम फैलाने का एक खतरनाक माध्यम भी बन सकती है।
(4) यह तकनीक मृत लोगों को फिर से परदे पर जीवंत कर सकती है, डबिंग को और अधिक स्वाभाविक बना सकती है, इस तनिक से ऐतिहासिक किरदारों को परदे पर यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करना अब संभव हो गया है।
(5) शिक्षा और प्रशिक्षण में डीपफेक जैसी तकनीकों का उपयोग कर शैक्षिक अनुभवों को ज्यादा रोचक बना सकते हैं।
(6) डीपफेक जैसी टेक्नोलॉजी जितना अधिक लाभ प्रदान कर सकती हैं, उतनी ही अधिक हानि और दुष्प्रभाव भी हैं।
(7) इसके उपयोग के साथ कानूनों को मजबूत करना चाहिए एवं जन – जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।
(8) डीपफेक तकनीक एक “दुधारी तलवार” की तरह है क्योंकि यह लाभ की जगह उतना ही हानि भी प्रदान कर सकता है।
डीपफेक का एतिहासिक परिप्रेक्ष्य
डीपफेक तकनीक की शुरुआत लगभग एक दशक पहले हुई, जब आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के क्षेत्र में जेनरेटिव एडवर्सेरियल नेटवर्क (GANs) का विकास हुआ। शुरू में इसका उपयोग मुख्य रूप से शोध और मनोरंजन उद्योग में किया गया था, जैसे– फिल्मों के विशेष प्रभाव (VFX) को और वास्तविक बनाना या किसी कलाकार की डबिंग को सहज करना। 2017 में “डीपफेक” शब्द सबसे पहले तब लोकप्रिय हुआ जब कुछ इंटरनेट उपयोगकर्ताओं ने एआई टूल्स की मदद से नकली वीडियो बनाने शुरू किए। धीरे-धीरे यह तकनीक इतनी उन्नत हो गई कि आज यह न केवल मनोरंजन और शिक्षा के क्षेत्र में काम आ रही है बल्कि गलत हाथों में जाकर भ्रामक सूचना, राजनीतिक दुरुपयोग और साइबर अपराध का बड़ा साधन भी बन चुकी है।
डीपफेक तकनीक का अर्थ क्या है?
“डीपफेक” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – “डीप लर्निंग” और “फेक”, यह तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से किसी व्यक्ति की तस्वीर, चेहरा, आवाज या हावभाव को किसी और के साथ बदलने में सक्षम है। उदाहरण के लिए, डीपफेक के माध्यम से किसी व्यक्ति का चेहरा किसी और वीडियो में जोड़कर ऐसा दिखाया जा सकता है मानो वह व्यक्ति सच में वह काम कर रहा हो, जबकि असल में उसने ऐसा कुछ नहीं किया।
डीपफेक के कुछ रचनात्मक उपयोग:
• मनोरंजन उद्योग में क्रांति:
फिल्मों में पुराने कलाकारों को फिर से जीवंत करना, डबिंग को अधिक स्वाभाविक बनाना, या ऐतिहासिक किरदारों को परदे पर यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करना अब संभव हो गया है। उदाहरणस्वरूप, ‘Star Wars’ जैसी फिल्मों में मृत कलाकारों को फिर से परदे पर लाया गया।
• शिक्षा और प्रशिक्षण में रोचकता :
इतिहास के महान व्यक्तित्वों को ‘जिंदा’ करके विद्यार्थियों के सामने प्रस्तुत करना शैक्षिक अनुभव को अधिक रोचक बना सकता है। मेडिकल या मिलिट्री ट्रेनिंग में भी डीपफेक आधारित सिमुलेशन उपयोगी हो सकते हैं।
• व्यक्तिगत रचनात्मकता में वृद्धि :
आम लोग अब अपनी कल्पना को साकार कर सकते हैं — चाहे वह मज़ाकिया वीडियो हो या कलात्मक प्रयोग। सोशल मीडिया पर कई उपयोगकर्ता डीपफेक का उपयोग मनोरंजन के लिए करते हैं।
• भाषायी अनुवाद में मदद :
विदेशी भाषाओं में वीडियो का स्वाभाविक अनुवाद कर, दर्शकों को मूल वीडियो जैसा ही अनुभव देना अब संभव हो रहा है।
डीपफेक के प्रयोग से होने वाले खतरों को भी ध्यान में रखना चाहिए ?
▪️ झूठ और भ्रम फैलाना:
डीपफेक तकनीक का सबसे बड़ा खतरा यह है कि इसका उपयोग किसी व्यक्ति के खिलाफ झूठ फैलाने में किया जा सकता है। उदाहरणस्वरूप, किसी राजनेता या मशहूर व्यक्ति का नकली वीडियो बनाकर गलत बयानबाज़ी दिखाना समाज में भ्रम और तनाव फैला सकता है।
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▪️ राजनीतिक दुरुपयोग:
चुनावों से पहले किसी उम्मीदवार का नकली बयान जारी कर जनता को गुमराह किया जा सकता है। इससे लोकतंत्र की नींव पर भी चोट पहुँचती है।
▪️ निजता का उल्लंघन और साइबर अपराध:
आम लोगों की छवियों का दुरुपयोग कर अश्लील या अपमानजनक कंटेंट बनाया जा सकता है। यह विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ साइबर उत्पीड़न का कारण बन रहा है।
▪️ विश्वसनीयता पर संकट:
जब हर वीडियो या ऑडियो नकली हो सकता है, तब असली और झूठ में अंतर कर पाना कठिन हो जाएगा। इससे समाचार, दस्तावेज़ी साक्ष्य और न्याय प्रक्रिया सभी पर असर पड़ सकता है।
डीपफेक का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक असर
डीपफेक तकनीक का सबसे गहरा प्रभाव लोगों की मानसिक स्थिति और समाज की आपसी विश्वसनीयता पर पड़ता है। जब किसी व्यक्ति का नकली वीडियो या ऑडियो प्रसारित होता है, तो वह उसकी प्रतिष्ठा, आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर चोट पहुँचा सकता है। विशेष रूप से महिलाओं और सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोगों को इसका सामना अधिक करना पड़ता है। समाज में भी एक समस्या खड़ी हो जाती है लोग असली और नकली में भेद न कर पाने की स्थिति में किसी भी सूचना पर भरोसा करना छोड़ देते हैं। इसे “पोस्ट-ट्रुथ सोसाइटी” की समस्या कहा जाता है, जहाँ तथ्य और साक्ष्य की जगह अफवाह और झूठ अधिक प्रभावी हो जाते हैं। परिणामस्वरूप सामाजिक रिश्तों में अविश्वास बढ़ता है और संवाद की नींव कमजोर होती है।
कानूनी और नैतिक चुनौतियाँ का सामना :
डीपफेक तकनीक के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई देशों ने कानून बनाने शुरू किए हैं, परन्तु यह प्रक्रिया तकनीक की गति से बहुत धीमी है। भारत में भी IT अधिनियम और साइबर क्राइम कानूनों के तहत कुछ मामलों में कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन डीपफेक के लिए विशेष प्रावधान अभी अपेक्षित हैं।
इसके साथ ही, नैतिकता की भी चुनौती है। इस प्रकार की तकनीकों का उपयोग किस उद्देश्य से किया जा रहा है, यह तय करता है कि वह उचित है या अनुचित। इसीलिए डिजिटल साक्षरता और नैतिक प्रशिक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डीपफेक तकनीक को लेकर कई देशों ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। अमेरिका और यूरोप में इस पर कानून बनाए गए हैं जिनके तहत किसी की अनुमति के बिना बनाए गए डीपफेक वीडियो या अश्लील सामग्री को अपराध माना जाता है। चीन ने भी 2023 से एक कड़ा नियम लागू किया है जिसमें किसी भी डीपफेक कंटेंट पर “स्पष्ट लेबलिंग” अनिवार्य कर दी गई है ताकि दर्शक उसे असली और नकली के बीच पहचान सकें। संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ भी वैश्विक स्तर पर इसके दुरुपयोग को रोकने और जिम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत ढाँचा तैयार कर रहे हैं। इन प्रयासों से स्पष्ट है कि डीपफेक केवल एक देश या समाज की समस्या नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक साझा चुनौती है, जिसका समाधान अंतरराष्ट्रीय सहयोग और कड़े नियमों से ही संभव है।
भारत में डीपफेक तकनीक को लेकर अभी तक कोई विशेष स्वतंत्र कानून नहीं है, लेकिन मौजूदा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act 2000) और साइबर अपराध कानूनों के तहत कुछ मामलों में कार्रवाई संभव है। हाल के वर्षों में चुनावों और सोशल मीडिया पर डीपफेक वीडियो के दुरुपयोग ने चिंता बढ़ा दी है। सरकार ने समय-समय पर चेतावनी जारी की है और सोशल मीडिया कंपनियों से मिलकर “फैक्ट-चेकिंग मैकेनिज़्म” तथा रिपोर्टिंग सिस्टम को मजबूत करने के प्रयास किए हैं। साथ ही, संसद और नीति-निर्माताओं के बीच डीपफेक पर सख्त कानून बनाने की मांग बढ़ रही है। वर्तमान परिदृश्य में भारत को न केवल कानूनी ढांचे को मजबूत करना होगा बल्कि आम नागरिकों में डिजिटल साक्षरता और जागरूकता भी बढ़ानी होगी, ताकि समाज इस तकनीक के खतरों से सुरक्षित रह सके।
समाधान और सुझाव
(1) कानूनों को मजबूत किया जाना चाहिए। डीपफेक पर विशेष कानून बनाए जाएं और उनके उल्लंघन पर सख्त दंड हो।
(2) तकनीकी समाधान विकसित होना चाहिए। ऐसी तकनीकें जो डीपफेक की पहचान कर सकें, जैसे डिजिटल वॉटरमार्किंग, AI-आधारित सत्यापन प्रणाली आदि।
(3) जन-जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। आम लोगों को इस तकनीक के बारे में शिक्षित किया जाए ताकि वे नकली वीडियो/ऑडियो को पहचान सकें।
(4) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की ज़िम्मेदारी भी बनती है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स को डीपफेक कंटेंट को रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
महत्वपूर्ण अंग
डीपफेक तकनीक एक “दुधारी तलवार” की तरह है। इसका उपयोग जहां रचनात्मकता, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन के क्षेत्र में अद्भुत क्रांति ला सकता है, वहीं इसका दुरुपयोग समाज, राजनीति और व्यक्तिगत जीवन में गंभीर संकट पैदा कर सकता है। अतः यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस तकनीक का उपयोग विवेक, नैतिकता और ज़िम्मेदारी के साथ करें। यदि इसे नियंत्रित और उचित दिशा में उपयोग किया जाए, तो यह मानवता के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है, अन्यथा यह एक बड़ा खतरा बन सकता है।
मीडिया और इंटरनेट है परमात्मा की देन
ना तो यह पृथ्वी हमारा असली घर है और ना ही यहाँ की सुख सुविधाएँ । इंटरनेट हो या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सभी संचार माध्यम मनुष्य के जीवन को आसान बनाने के लिए परमात्मा द्वारा दिए गए हैं। भगवान के ज्ञान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने के लिए मीडिया अस्तित्व में आया और इस तरह मानव का कार्य आसान बना। मनुष्य को अपनी ऊर्जा ईश्वर जे ज्ञान प्रसार, समय की बचत और समाज सेवा में लगाना चाहिए। इसके विपरीत किए गए कार्य उसके भविष्य के लिए निश्चित रूप से नकारात्मक सिद्ध होंगे। परमात्मा के असली संदेश जिनके लिए ये सभी सुविधाएं अस्तित्व में हैं जानने के लिए देखें साधना चैनल प्रतिदिन शाम साढ़े सात बजे।