पिछले 150 वर्षों में औद्योगिक क्रांति के बाद से ही वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। CO₂ एक ग्रीनहाउस गैस है, जो पृथ्वी की सतह पर गर्मी को फंसाकर रखती है। इसके अधिक स्तर के कारण हमारी धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे जलवायु संकट पैदा हो रहा है। इस गंभीर समस्या का समाधान खोजने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक और इंजीनियर नए तरीकों पर काम कर रहे हैं।
इसी दिशा में अमेरिका की लीहाई यूनिवर्सिटी, पेनसिल्वेनिया में कार्यरत पर्यावरण इंजीनियर अरूप सेनगुप्ता ने एक अनोखी प्रणाली विकसित की है, जो वातावरण से CO₂ को हटाने में सक्षम है और इसे सुरक्षित रूप से समुद्र में जारी किया जा सकता है।
CO₂ के बढ़ते स्तर के नुकसान
CO₂ का बढ़ता स्तर जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है और इसके कई दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं:
- ग्लोबल वॉर्मिंग: CO₂ पृथ्वी के वायुमंडल में गर्मी को फंसाकर रखती है, जिससे तापमान बढ़ता है। यह ग्लोबल वॉर्मिंग का मुख्य कारण है, जो ध्रुवीय बर्फ को पिघलाने, समुद्र के स्तर को बढ़ाने और कई क्षेत्रों में गर्म हवाओं का कारण बनता है।
- मौसम में असामान्य परिवर्तन: CO₂ के कारण मौसम में असामान्य बदलाव देखने को मिलते हैं। अधिक गर्मी और सूखा, बाढ़, अनियमित वर्षा और तूफान जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जो कृषि, मानव जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करती हैं।
- समुद्र का अम्लीकरण: CO₂ का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में घुल जाता है, जिससे समुद्र का पानी अम्लीय हो जाता है। यह समुद्री जीवन, जैसे प्रवाल (कोरल), शेलफिश और मछलियों के लिए खतरनाक है, क्योंकि अम्लीय पानी में इनका जीवन मुश्किल हो जाता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: CO₂ का बढ़ता स्तर अप्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालता है। गर्मी और प्रदूषण में वृद्धि के कारण श्वास संबंधी बीमारियां, दिल की बीमारियां, और हीट स्ट्रोक जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।
कैसे काम करती है अरूप सेनगुप्ता की CO₂ हटाने की प्रणाली?
अरूप सेनगुप्ता और उनकी टीम द्वारा विकसित यह प्रणाली एक विशेष प्रकार का फिल्टर है, जो हवा से CO₂ को अलग करता है। जब हवा इस फिल्टर से गुजरती है, तो उसमें मौजूद CO₂ फिल्टर में फंस जाती है, जबकि अन्य गैसें बिना किसी बाधा के बाहर निकल जाती हैं। इसके बाद इस फिल्टर को साफ करने के लिए इसमें समुद्री पानी प्रवाहित किया जाता है, जिससे CO₂ सोडियम बाइकार्बोनेट (बेकिंग सोडा) में बदल जाती है। सोडियम बाइकार्बोनेट को आसानी से समुद्र में घोला जा सकता है और यह समुद्री रसायनों पर नकारात्मक असर नहीं डालता।
समुद्र को हो सकता है लाभ
इस प्रक्रिया से न केवल वातावरण से CO₂ को हटाया जा सकता है बल्कि इससे समुद्री अम्लीकरण की समस्या को भी कुछ हद तक कम किया जा सकता है। सोडियम बाइकार्बोनेट क्षारीय होता है, जिससे यह समुद्र के अम्लीय प्रभाव को संतुलित करने में सहायक है। समुद्री अम्लीकरण में कमी से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को लाभ मिल सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण खतरे में है।
IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) का लक्ष्य और CO₂ पर नियंत्रण का महत्व
अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (IPCC) के अनुसार, पिछले डेढ़ शताब्दी में CO₂ का स्तर तेजी से बढ़ा है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है। IPCC ने 2050 तक CO₂ के स्तर को घटाने का लक्ष्य निर्धारित किया है ताकि जलवायु संकट के गंभीर प्रभावों को रोका जा सके।
अरूप सेनगुप्ता की यह तकनीक CO₂ के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने में एक नई उम्मीद की तरह है। यदि इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जाए, तो यह तकनीक न केवल कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को कम करने में सहायक होगी, बल्कि ग्लोबल वॉर्मिंग और समुद्र की अम्लता को संतुलित करने में भी योगदान दे सकती है।”