बाल्यावस्था मानव जीवन में यौवनारंभ तक कही गई है । इस अवस्था में बच्चा बहुत से विकासात्मक चरण से गुजरता है। 2 वर्ष से 13 वर्ष (बाल्यावस्था) को दो चरण में बांटा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि शुरुआती बाल्यावस्था और उत्तर बाल्यावस्था कहते हैं।यह बात हम सब जानते हैं कि शैषवावस्था के दौरान बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास अपूर्ण होता है। जैसे ही बच्चे बाल्यावस्था के अंतर्गत आते हैं ,तब उनका पर्याप्त तथा सर्वांगीण विकास होता है। बाल्यावस्था के दौरान ही बच्चे वातावरण (पर्यावरण) द्वारा सबसे अधिक सीखते हैं । यही कारण है कि बाल्यावस्था को पूर्ण जीवन की आधारषिला कहते हैं ।
बाल्यावस्था में बच्चों को अधिकारों से वंचित रखना नुकसानदेह
बाल्यावस्था के दौरान यदि बच्चे को उसके अधिकारों एवं शिक्षा से वंचित रखा जाए तो उसका संपूर्ण जीवन का विकास रुक जाता है। बच्चे का किसी भी क्षेत्र में विकास नहीं हो पाता है । यदि बच्चों को बाल्यावस्था से ही उनके अधिकार प्रदान किए जाएं तो बहुत ही सरलता से उनका शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं सामाजिक विकास प्रारम्भ हो जाता है । बच्चों के जीवन में शिक्षा का भी बहुत ही महत्व है ।
वर्तमान में शिक्षा का महत्व केवल अकादमिक तक सीमित कर दिया गया है जबकि बच्चे का व्यक्तिगत और भावनात्मक विकास शिक्षा द्वारा ही विकसित हो सकते है। शिक्षित मानव समाज में ज्यादातर लोग आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और उद्देश्य की भावना ज्यादा रखते हैं । जिस बच्चे के अंदर यदि ऐसे भाव प्रकट हो जाएं तो संपूर्ण जीवन खुशी में निकलता है।
क्या हैं बच्चों के अधिकारों को समझने के चार मार्गदर्शक सिद्धांत
मुख्य तौर पर बच्चे के हित में उसको 8 अधिकार तो सही समय पर प्रदान किए जाने चाहिए । इन अधिकारों को हम 4 मार्गदर्शक सिद्धांतों के माध्यम से जानेंगे :
▪️ गैर – भेदभाव का सिद्धांत
▪️ बच्चे के सर्वोत्तम हित का सिद्धांत
▪️ जीवन, अस्तित्व एवं विकास का सिद्धांत
▪️ समावेशन और भागीदारी का सिद्धांत
बच्चों के हित में यह मुख्य अधिकारों का उल्लेख बार – बार किया जाता है।जैसे – जीवन, शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य, जल, पहचान, स्वतंत्रता, संरक्षण अंततः ये सब 8 अधिकार बच्चों के जीवन का संपूर्ण विकास के जिम्मेदार माने जाते हैं ।
प्रत्येक बच्चे को अपना जीवन जीने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए। बच्चों को कभी दंडित नहीं किया जाना चाहिए । उनको जीवित रहने के साथ हर प्रकार की परिस्थितियों में बड़े होने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। उनको शिक्षा के साथ – साथ सामाजिक जीवन में आनंदमय रहने और स्वयं के भविष्य निर्माण की अनुमति प्रदान करनी चाहिए। जिससे सभी बच्चों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न न हो सके ।
कहा जाता है कि पूरे विश्व में प्रत्येक 5 सेकंड में कहीं न कहीं एक बच्चा भूख से तड़फ कर मर जाता है। उनको जीवित रखने के लिए समय पर भोजन व्यवस्था करनी चाहिए। भोजन की कमी होने पर भी बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं ,जिससे उनके शरीर में अनेकों प्रकार की बीमारियां पनपने लगती हैं । बच्चों को उनके स्वास्थ्य के हित में अनुमति होनी चाहिए। इससे एक सक्रिय समाज के विकास में मदद मिल सकती है,क्योंकि स्वस्थ बच्चे का ही शारीरिक एवं मानसिक विकास होना संभव है।
प्रत्येक बच्चे का उनको स्वयं की पहचान बनाने का अधिकार सर्वप्रथम मिलना चाहिए । बच्चे को उसका प्रथम नाम, एक उपनाम साथ ही राष्ट्रीयता रखने और उसके साथी संबंधी (रिश्तेदार) कौन हैं,यह जानने का भी अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। बच्चों के हर प्रकार से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए,जिससे वह अपने खुदके विचार ,राय रख सके और जीवन में जठिल से जठिल निर्णयों में भी भाग लेने की सोच रख सकें। इस से हर बच्चे का भावनात्मक विकास अच्छे से हो सकता है । बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, भेदभाव और शोषण न हो, इस के पक्ष में उनको संरक्षण का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। बच्चे को सुरक्षात्मक वातावरण में रहने का अधिकार मिलता है,तो वह निर्भयता और मानसिक रूप से विकसित होने लगते हैं।
बाल्यजीवन में शिक्षा के सन्दर्भ में भारतीय संविधान के अंतर्गत अधिकारों का विवरण
- 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है । उन्हें हरहाल में शिक्षा प्राप्त होनी ही चाहिए।
- राज्य द्वारा 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा और देखभाल की संपूर्ण व्यवस्था करनी चाहिए । इस वर्ग के बच्चों की देखरेख एवं शिक्षा के संबंध राज्य को सर्वप्रथम जोर देना बहुत जरूरी है । इसके बिना देश का विकास होना संभव नहीं है।
- आपको बता दें कि 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खदान, कारखाने या ज्यादा मेहनत वाले कार्य में नहीं लगा सकते हैं । इतनी कम उम्र में ही बच्चों को मेहनत के लिए भेज दिया जाता है,जिससे वह संपूर्ण अधिकारों से वंचित रह जाते हैं ।
- सभी बच्चों का पालन-पोषण सही से होना चाहिए और साथ ही उन्हें आज़ादी और सम्मान के साथ बराबर अवसर और सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।
- बिना शिक्षा के व्यक्ति ऐसा है जैसे बिना पंख के पक्षी, इसलिए बच्चों के माता-पिता और अभिभावक जनों को कहा गया है कि बच्चों को शिक्षित करना हमारा मुख्य कर्तव्य है अर्थात बच्चों को शिक्षित करना बहुत जरूरी है।
शिक्षित बच्चे ही देश के विकास की नींव होते हैं
शिक्षा द्वारा ही बच्चे के उत्तम भविष्य का निर्माण हो सकता है। जिससे उन्हें बेहतर जीवन जीने की कला प्राप्त होती है। बच्चों को ज़रूरी ज्ञान और कौशल शिक्षा द्वारा ही मिल सकते हैं।क्योंकि इसके बिना उन्हें आलोचनात्मक सोचने और सही फ़ैसले लेने में कठिनाई होती है । सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति ही दूसरों के साथ अच्छे से व्यवहार करता है और ये तरीका भी शिक्षा के माध्यम से ही सिखाया जाता है।
बच्चों के जीवन में अनुशासन, नैतिक मूल्य, समाजी एकता, तकनीकी दक्षता, और आत्मविश्वास को शिक्षा द्वारा ही जागृत किया जा सकता है।
एक शिक्षित बच्चा ही पूरी दुनिया के संबंध में गहराई से समझ सकता है। मन की गंदगी, संदेह, और भय से दूर रहने की कला भी शिक्षा ही प्रदान करती है । अंततः शिक्षा बच्चे के जीवन की वह कुंजी है,जिससे वह देश के लिए एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकता है और हमारा देश अधिक उन्नति कर सकता है।
इस प्रकार बच्चों को उनके अधिकारों की पूरी जानकारी होनी चाहिए और अपने अधिकारों का प्रयोग करना आना चाहिए। इसके लिए सरकार ने बहुत से अभियान चला रखे हैं। बच्चों के विकास के लिए यह एक अच्छी पहल है।