अमृता प्रीतम सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि हिंदी और पंजाबी साहित्य की वह इमारत हैं, जिसने प्रेम, पीड़ा और स्वतंत्र सोच को एक नई उड़ान दी। उनका जीवन किसी उपन्यास से कम नहीं था—बचपन में संघर्ष, जवानी में विद्रोह और लेखनी में बग़ावत। देश के विभाजन के दुख को उन्होंने अपनी कालजयी रचना ‘अज्ज आखां वारिस शाह नूं’ में जिस दर्द के साथ उकेरा, वह आज भी दिलों को झकझोर देता है। साहिर लुधियानवी के लिए उनका प्रेम, इमरोज़ के साथ उनकी आत्मीयता, और समाज के बंधनों को तोड़ती उनकी सोच ने उन्हें एक अनोखी शख्सियत बना दिया।
अमृता की कहानियाँ, कविताएँ और आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ न सिर्फ़ साहित्यिक धरोहर हैं, बल्कि हर उस दिल की आवाज़ हैं जो प्यार, आज़ादी और खुद की पहचान के लिए धड़कता है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
उनका जन्म 31 अगस्त 1919, गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ और उनका असली नाम अमृता कौर था। उनके पिता कृतार सिंह हितकारी एक प्रसिद्ध विद्वान, शिक्षक और कवि थे। माता का निधन अमृता के बचपन में ही हो गया, जिससे वे भीतर से बेहद संवेदनशील हो गईं। माँ के गुजर जाने के बाद, वे अपने पिता के बेहद करीब हो गईं। उनका झुकाव बचपन से ही साहित्य और लेखन की ओर था।
साहित्यिक सफर और लेखन
अमृता प्रीतम ने सिर्फ 16 साल की उम्र में ही अपनी पहली किताब लिखी। उन्होंने पंजाबी और हिंदी में 100 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें कविता संग्रह, उपन्यास, आत्मकथा, निबंध और कहानियाँ शामिल हैं। वे अपनी लेखनी में समाज की कड़वी सच्चाइयों, स्त्री-स्वतंत्रता और प्रेम की गहराई को व्यक्त करने के लिए जानी जाती थीं। उनकी रचनाओं में प्रेम, दर्द, विद्रोह और सामाजिक बदलाव की झलक मिलती है।
भारत-पाक विभाजन पर कविता लिखना
भारत विभाजन (1947) ने अमृता प्रीतम को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने अपनी मशहूर कविता “अज्ज आखाँ वारिस शाह नूं” लिखी, जिसमें उन्होंने पंजाब की बर्बादी और महिलाओं की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण किया।
Also Read: National Safety Day: जानिए इतिहास, महत्व, थीम और उद्देश्य
इस कविता में वे सूफी कवि वारिस शाह से गुहार लगाती हैं कि वे लौटकर आएं और पंजाब की दर्दनाक स्थिति को देखें। यह कविता विभाजन की त्रासदी को दर्शाने वाली सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक मानी जाती है।
अमृता प्रीतम की प्रमुख रचनाएँ
अमृता प्रीतम ने कई तरह की रचनाएँ लिखीं, जिनमें कविताएँ, उपन्यास, आत्मकथा और निबंध शामिल हैं।
- कविता संग्रह: अज्ज आखाँ वारिस शाह नूं, सुनहरे, कागज़ ते कैनवास, नागमणि आदि।
- प्रसिद्ध उपन्यास: पिंजर, धरती, सागर ते सीपियां ,एक थी अनीता, कच्चा रास्ता।
- आत्मकथा: रसीदी टिकट – इसमें उन्होंने अपने जीवन, प्रेम और संघर्ष के बारे में खुलकर लिखा।
प्रेम और व्यक्तिगत जीवन
अमृता प्रीतम का विवाह प्रीतम सिंह से हुआ था, लेकिन यह शादी ज्यादा सफल नहीं रही। उनका गहरा लगाव प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी से था। वे उनसे बेइंतहा प्यार करती थीं, लेकिन यह प्रेम एकतरफा ही रहा।
साहिर के प्रति अपने प्रेम को उन्होंने अपनी रचनाओं में भी दर्शाया है। साहिर से दूरी के बाद, वे कलाकार इमरोज़ के करीब आईं। इमरोज़ उनके जीवनभर साथी रहे, लेकिन उन्होंने कभी शादी नहीं की।
सम्मान और पुरस्कार
अमृता प्रीतम को कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं –
- 1956 – साहित्य अकादमी पुरस्कार (पंजाबी भाषा में पहली महिला विजेता)
- 1969 – पद्मश्री
- 1982 – भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (पंजाबी में पहली महिला लेखिका)
- 2004 – पद्म विभूषण
- फ्रांस का साहित्यिक सम्मान
निधन और विरासत
31 अक्टूबर 2005 को, अमृता प्रीतम ने दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनकी रचनाएँ आज भी पढ़ी जाती हैं और साहित्य प्रेमियों के दिलों में वे जीवित हैं। उनकी प्रेम-कहानियाँ और विद्रोही लेखन भारतीय साहित्य में हमेशा याद रखे जाएंगे।
अमृता प्रीतम की खास बातें
- वे पहली ऐसी महिला थीं, जिन्होंने पंजाबी साहित्य को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।
- उनका लेखन समाज में महिलाओं की स्थिति, प्रेम, बगावत और सशक्तिकरण का प्रतीक रहा है।
- वे भारतीय साहित्य में “प्रेम और विद्रोह की आवाज़” मानी जाती हैं।
क्या है मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य
वर्तमान में पूरे विश्व में एकमात्र केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं, जो वास्तविक तत्वज्ञान करा कर पूर्ण परमात्मा की पूजा आराधना बताते है। वह पूर्ण परमात्मा ही हमें सुख और शांति दे सकता है व रोगरहित कर मोक्ष दिला सकता है। बिना मोक्ष के हम काल-चक्र में ही घूमते रहेंगे। सर्व सुख और मोक्ष केवल तत्वदर्शी संत की शरण में जाने से सम्भव है। अधिक जानकारी के लिए आप विजिट करें जगतगुरु संत रामपाल जी महाराज ऐप पर।