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Home » योग: आत्मा, मन और शरीर का समन्वय | सच्चा मोक्ष तत्वज्ञान से

Spirituality

योग: आत्मा, मन और शरीर का समन्वय | सच्चा मोक्ष तत्वज्ञान से

SA News
Last updated: May 20, 2025 1:00 pm
SA News
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योग: आत्मा, मन और शरीर का समन्वय | सच्चा मोक्ष तत्वज्ञान से
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योग केवल शरीरिक व्यायाम का नाम नहीं है, यह आत्मा, मन और शरीर के समन्वय की प्रक्रिया है। ऐसा भी कहा जाता है कि योग से मन को वश में कर हम हमारे लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। इसका उद्देश्य जीवन में संतुलन और आंतरिक शांति लाना है। योग करने वाला व्यक्ति शारीरिक रूप से तो अच्छा दिखता ही है साथ में अन्दर से भी भावनात्मक रूप से मजबूत होता है। योग करने वाले व्यक्ति की नित्य नियमावली भी सही ढंग से सुचारू रहती है।

Contents
योग का अर्थ और उद्देश्य ध्यान क्या है ?क्यों ज़रूरी है आज के समय में योग और ध्यान?मानसिक तनाव और चिंता का समाधान :एकाग्रता और आत्मविश्वास में वृद्धि :योग या ध्यान से नहीं मिट सकता है जन्म-मरण का रोग, यह तो सत्य सिमरन से होगा सुलभ 

ये हमें जीवन में समय से सर्व क्रियाएँ करने के लिए भी प्रेरित करता है। योग के अंतर्गत केवल शरीर की व्यायाम या आसान करना नहीं आता है। अनुभवी  लोग कहते हैं कि मन को शांत कर अंतरात्मा में परम ईश्वर का ध्यान भी योग ही कहलाता है जो एक नई प्रकार की ऊर्जा प्रदान करता है।

योग का अर्थ और उद्देश्य 

‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘युज्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है – जोड़ना। योग आत्मा को परमात्मा से, शरीर को मन से, और अंततः मनुष्य को स्वयं की चेतना से जोड़ने का माध्यम है। इसका उद्देश्य केवल लचीलापन या स्वास्थ्य लाभ नहीं, बल्कि आत्मबोध और मोक्ष की ओर अग्रसर होना है। योग से अनेकों लाभ हैं, शरीर में हल्कापन तो रहता ही है साथ में आंतरिक सुख – शांति भी महसूस होती है। योग के माध्यम से लोग अपने क्रोध और चिंता को भी भूल जाते है। योग का मुख्य उद्देश्य तो यही है कि अपनी चेतना से रूबरू करवाना है।

ध्यान क्या है ?

 भ्रम और सच्चाई

ध्यान को अक्सर केवल बैठकर आंखें बंद करने या “कुछ न सोचने” की प्रक्रिया माना जाता है, जो अधूरा दृष्टिकोण है। ध्यान वास्तव में मानसिक सजगता और चित्त की एकाग्रता का अभ्यास है। यह कोई क्रिया नहीं, बल्कि एक “स्थिति” है,  पूर्ण रूप से वर्तमान क्षण में टिके रहने की।

सच्चाई:

ध्यान विचारों को नियंत्रित नहीं करता, बल्कि उन्हें देखना सिखाता है। यह कोई धर्म विशेष की विधि नहीं, बल्कि सार्वभौमिक साधना है। ध्यान कोई भी कर सकता है। परंतु ध्यान से कुछ क्षण के लिए हम अंतर्मन द्वारा शांति का अनुभव करते है परंतु कुछ समय बाद मन वही का वही कार्य करने लगता है जो उसे करना होता है। 

क्यों ज़रूरी है आज के समय में योग और ध्यान?

आधुनिक जीवन ने हमें गति दी है, परंतु शांति छीन ली है। योग और ध्यान हमें इस असंतुलन से बाहर निकालकर आंतरिक स्थिरता प्रदान करते हैं। योग और ध्यान द्वारा हम सिर्फ कुछ समय के लिए ही शांति अनुभव कर सकते हैं। यदि हम योग और ध्यान द्वारा मन को केंद्रित करना बंद कर देते हैं तो फिर से हमें वहीं बेचैनी और अशांति का एहसास होने लगता है।

मानसिक तनाव और चिंता का समाधान :

योग और ध्यान दोनों ही शरीर की कॉर्टिसोल (तनाव हार्मोन) की मात्रा को घटाते हैं।

प्राणायाम, विशेषकर अनुलोम-विलोम और भ्रामरी, मन को शांति देते हैं और चिंता कम करते हैं। परंतु एक बात का विशेष ध्यान रहे कि हमे यह क्रियाएं निरंतर करना होती हैं तब जाकर हम रोज शांति का अनुभव कर सकते हैं। योग और ध्यान कोई जादू की छड़ी या दवा नहीं है कि आप ने दवाई खाई और आपका रोग बिल्कुल समाप्त हो गया। यह एक अभ्यास है जो हमें हमारी दिनचर्या में प्रतिदिन करना होगा। 

एकाग्रता और आत्मविश्वास में वृद्धि :

ध्यान और योग से प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स (दिमाग का निर्णय लेने वाला हिस्सा) मजबूत होता है, जिससे हमें कुछ लाभ होते है जैसे कि :

  • निर्णय क्षमता बढ़ती है
  • आत्म-संवाद बेहतर होता है
  • आत्मविश्वास में सुधार होता है

योग या ध्यान से नहीं मिट सकता है जन्म-मरण का रोग, यह तो सत्य सिमरन से होगा सुलभ 

यह बहुत बड़ा रोग है जन्म मरण ,इसके चक्कर में हम फँसे पड़े है । बहुत ही कष्ट सहन कर रहे हैं और करते आ रहे है। क्यों भूल जाते है इज्जत कमाने में की बार बार हम 84 लाख योनियों में आ जा रहे है। इन चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्ति नहीं मिलती और हम पल पल दुःख दर्द झेलते रहते है। अंत में याद आते है परमात्मा जब सब कुछ लुट चुका होता है। 

कबीर साहेब जी कहते है:- 

आछे दिन पीछे गए, गुरु से किया न हेत |

अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत ||

भावार्थ है :- कबीर साहेब जी मानव को समझा रहे है कि यदि समय रहते मनुष्य सद्भक्ति नहीं करता है फिर अंत में पछताने के अलावा कुछ नहीं रहता है । इसलिए सच्चे सद्गुरु की शरण में जाकर जन्म – मरण के खेल को समझ कर इससे जीत प्राप्त करना ही मुख्य कार्य है।

वर्तमान में यह तत्वज्ञान केवल पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी ही प्रदान कर रहे है । पूरे विश्व में वही केवल तत्वदर्शी संत हैं, जिसका प्रमाण श्रीमद्भागवत गीता जी अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 व अध्याय 16 और 17 में है।

मानव समाज को अपने दैनिक कार्य करते रहते साथ में संत जी की शरण में आकर आध्यात्मिक ज्ञान को समझ कर अपना कल्याण करवाना अति आवश्यक और महत्वपूर्ण है। यदि हम जन्म – मरण के खेल को समझ कर, इससे कैसे छुटा जाए, ये समझ जाएं  तब हम सबसे बड़े योग करने वाले हैं। केवल योग द्वारा मन को वश में कर लेने मात्र से हम ईश्वर और मोक्ष नहीं पा सकते हैं।

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