वेदों और विज्ञान से मंत्रों के गहरे रहस्यों की आध्यात्मिक और दार्शनिक जानकारी विस्तार से जानेंगे। इसमें प्रकृति, ईश्वर, परमेश्वर, मनुष्य और ब्रह्मांड के बीच संबंधों की व्याख्या की गई है। वेदों में अनेक मंत्रों का उद्देश्य जीवन के रहस्यों को समझाना और आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करना है।
हमारे वेद- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद,और अथर्ववेद के मंत्र हमारे सनातन संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। पूजा,पाठ, मंत्र जाप, तप, यज्ञ, हवन, साधना आदि जिनका उल्लेख हमारे वेदों और शास्त्रों में वर्णित है। जिसको सिर्फ तत्वदर्शी संत के बताएं गए तत्व ज्ञान के आधार पर करने से लोक, परलोक दोनों का लाभ प्राप्त कर साधक को मोक्ष की प्रप्ति संभव होती है।
मंत्रों के कई स्तर होते हैं
1. आध्यात्मिक स्तर – मंत्रों में जीव और परमात्मा के बीच संबंधों का वर्णन होता है। आत्मा के स्वभाव, ईश्वर की महिमा और मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले मंत्र इसी स्तर पर आते हैं।
2. दर्शनिक स्तर – यहां विभिन्न तत्वों, जैसे अग्नि, जल, वायु आदि, का प्रतीकात्मक अर्थ होता है। इन मंत्रों में मानव के मानसिक और भावनात्मक अवस्थाओं का प्रतीकात्मक वर्णन है।
3. भौतिक स्तर – इसमें भौतिक और यज्ञीय कर्मकांडों का वर्णन मिलता है, जिनका उद्देश्य सामाजिक और भौतिक उन्नति को सुनिश्चित करना है।
4. प्रार्थना और स्तुति – कई मंत्र देवताओं की स्तुति और प्रार्थना के रूप में हैं, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए माने जाते हैं।
मंत्र के प्रकार
मंत्र कई प्रकार के होते हैं:
- बीज मंत्र: जैसे “ॐ,” “ह्रीं,” “श्रीं” आदि, जो विशेष ऊर्जा का स्रोत माने जाते हैं।
- मंत्रों का सही तरीके से उपयोग व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और आंतरिक ऊर्जा का विकास कर सकता है।
- वेदों में परमात्मा प्राप्ति और उसकी जानकारी भी उल्लेखित है जो तत्वदर्शी संत ही जानता है।
मंत्र विज्ञान: आधारभूत तत्व
बिल्कुल, मंत्र को एक विज्ञान के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि इसमें ध्वनि, ध्यान और ऊर्जा का उपयोग करके मन और शरीर पर प्रभाव डालने के सटीक सिद्धांत मौजूद हैं। मंत्र विज्ञान के आधारभूत तत्व निम्नलिखित हैं, जो विज्ञान ने सिद्ध किया है:
1. ध्वनि की ऊर्जा (Sound Energy): विज्ञान कहता है कि हर ध्वनि का एक निश्चित कंपन (वाइब्रेशन) होता है, जो आसपास की ऊर्जा और वातावरण को प्रभावित करता है। मंत्र भी ध्वनि-आधारित ऊर्जा है, जिसमें सही उच्चारण से विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं। ये तरंगें हमारे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र पर असर डालती हैं, जिससे मानसिक और शारीरिक स्थिति में बदलाव आता है।
2. संगीत और मन के प्रभाव: मंत्रों में जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वह किसी विशेष आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) पर आधारित होती है। उदाहरण के लिए, “ॐ” का उच्चारण 432 हर्ट्ज पर होता है, जो प्राकृतिक ध्वनि आवृत्ति है और इसे मानसिक शांति और एकाग्रता को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी माना जाता है।
3. साइकोलॉजिकल और न्यूरोलॉजिकल प्रभाव: मस्तिष्क में कुछ न्यूरोट्रांसमीटर्स का स्राव होता है, जैसे कि डोपामाइन और सेरोटोनिन, जो मानसिक शांति, आनंद और ध्यान केंद्रित करने में सहायक होते हैं। यह तनाव और मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकता है।
4. ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ाव: विज्ञान में यह भी कहा गया है कि ब्रह्मांड में सब कुछ एक-दूसरे से ऊर्जा के माध्यम से जुड़ा हुआ है। मंत्रों को ब्रह्मांडीय ध्वनियों का प्रतिनिधित्व माना गया है। जब व्यक्ति मंत्र जाप करता है, तो वह ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, “ॐ” ध्वनि को ब्रह्मांड का मूल स्वर कहा गया है, जिससे जाप करने पर व्यक्ति ब्रह्मांड के साथ एकत्व अनुभव कर सकता है।
5. चक्रों का सक्रियण: योग और तंत्र के अनुसार, हमारे शरीर में सात ऊर्जा केंद्र (चक्र) होते हैं। इन चक्रों को सक्रिय करने के लिए विशेष प्रकार के मंत्रों का जाप किया जाता है। जब सही मंत्र का उच्चारण और ध्यान एकाग्रता के साथ किया जाता है, तो इन चक्रों में ऊर्जा का संचार होता है। इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है और आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया में मदद मिलती है।
6. पारिस्थितिकी और चिकित्सा विज्ञान पर प्रभाव: कई शोधों में पाया गया है कि मंत्र जाप से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह शरीर में रक्तचाप,हृदय गति को स्थिर और इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होता है। श्वसन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर में ऑक्सीजन का स्तर भी सुधरता है।
इस प्रकार, मंत्र केवल एक धार्मिक प्रथा ही नहीं है, बल्कि एक विज्ञान है जो ध्वनि, कंपन और ध्यान के माध्यम से मनुष्य के मस्तिष्क, शरीर और आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। सच्चा संतुलन, आत्मिक उन्नति और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के लिए एक सच्चे सतगुरु का होना आवश्यक है, जैसा कि श्रीमद्भगवद गीता के अध्याय 4 के श्लोक 34 में उल्लेख किया गया है। नकली गुरुओं के कारण अब तक सारा ज्ञान उलझा हुआ था। संतों का भी कहना है:
“गुरुआ गाम बिगाड़े संतो, गुरूआ गाम बिगाड़े।
ऐसे कर्म जीव के लादिए, इब झड़े न झाड़े।।”
गलत जानकारी और नकली गुरुओं की वजह से हम अपने ऊपर बोझ लादे हुए थे। लेकिन सच्चे सतगुरु के मार्गदर्शन में आकर सभी उलझनें सुलझ गई हैं।
एक झलक:
संत रामपाल जी महाराज का आलौकिक ज्ञान: मोक्ष का समय
मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले साधकों को गति देने के लिए स्वयं परमात्मा ने अपने मुख कमल से इस लोक में अपने दिव्य शब्द और मंत्र प्रदान किए हैं।
कबीर परमात्मा जी कहते हैं:
“सोहम शब्द हम जग में लाए, सार शब्द हमने गुप्त छुपाए।”
तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज तीन चरणों में नाम जाप का मंत्र प्रदान करते हैं, जो वेदों के अनुकूल और परमात्मा प्रदत्त है। इस शास्त्रोक्त विधि से श्रद्धापूर्वक भक्ति करने वाले साधकों के घोर से घोर पापों का नाश होता है और वे सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हैं। परमात्मा ने स्वयं बताया है:
“वेद कतेब झूठे नहीं भाई, झूठे हैं जो समझे नाही।”
संत रामपाल जी महाराज के अनुसार, भक्ति साधना करने वाले भक्तों को सभी सिद्धियां सहजता से प्राप्त होती हैं। यह अमर मंत्र साधक के जन्म-मरण रूपी रोग का भी समूल नाश कर देता है। ऐसे अमोघ मंत्र के स्वामी संत रामपाल जी महाराज हैं, जो संपूर्ण ब्रह्मांड में एकमात्र तत्वदर्शी संत हैं, जो शास्त्रोक्त भक्ति और मंत्र की साधना करते हैं और कराते हैं।
संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किए गए तीन अमोघ मंत्र:
1. ब्रह्म गायत्री मंत्र: इसमें सात मंत्र हैं। यह सात चक्रों का वेधन कर अक्षर पुरुष के लोक तक ले जाता है।
2. सतनाम: दो अक्षर का यह मंत्र अक्षर पुरुष के लोक और इक्कीस ब्रह्मांडों से आगे 12वें द्वार तक की यात्रा में सहायक है।
3. सारनाम: (मुक्ति दाता) यह 12वें द्वार के पार सतलोक तक की यात्रा में सहायक होता है।
इन मंत्रों की जानकारी गीता जी अध्याय 17 श्लोक 23 में दी गई है। इन गुप्त मंत्रों के अधिकारी वर्तमान में सतगुरु रामपाल जी महाराज ही हैं। उनसे उपदेश प्राप्त कर लाखों लोग भौतिक, शारीरिक और आध्यात्मिक सुख प्राप्त कर रहे हैं और मर्यादा पूर्वक साधना कर मोक्ष (सतलोक) की राह में अग्रसर हैं।
कलयुग में यही मोक्ष का पूर्वनिर्धारित समय है:
“कलयुग केवल नाम अधारा, सुमर सुमर नर उतरे पारा।”
कलयुग में नाम के माध्यम से मुक्ति (मोक्ष) का प्रमाण विभिन्न शास्त्रों में मिलता है।