सरकारी अस्पतालों में वितरित खांसी सिरप से बच्चों की बिगड़ती हालत और मौतों ने उठाए दवा गुणवत्ता पर गंभीर सवाल
घटना का विवरण और परिवार का दर्द
भरतपुर जिले के वैर क्षेत्र में दो वर्षीय मासूम साया की मौत ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है। परिजनों का आरोप है कि सरकारी अस्पताल से मिली मुफ्त खांसी सिरप पीने के बाद बच्चे की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उसे पहले भरतपुर और फिर जयपुर के जेके लोन अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उसे बचा नहीं सके। इससे पहले सीकर और भरतपुर में भी ऐसे ही मामलों में बच्चों की हालत बिगड़ने की खबरें आई थीं। साया की मां ने बताया कि सिरप पीने के कुछ घंटे बाद बच्चा बेहोश हो गया और फिर कभी नहीं उठा। इस घटना ने मुफ्त दवा योजना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
दवा की गुणवत्ता और जांच प्रक्रिया
राजस्थान मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन ने अब तक 22 बैचों की खांसी सिरप पर रोक लगा दी है। प्रारंभिक जांच में कुछ सिरप में डाईएथिलीन ग्लाइकोल जैसे विषैले तत्व पाए गए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों में दवा के नमूने एकत्र कर जांच के लिए भेजे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के लिए दवा की मात्रा और गुणवत्ता अत्यंत संवेदनशील होती है, और किसी भी लापरवाही से जान का खतरा हो सकता है। सरकार ने फिलहाल सिरप का वितरण रोक दिया है और डॉक्टरों को निर्देश दिए हैं कि वे बच्चों को यह दवा न दें।
बच्चों के लिए दवा नीति में बदलाव की जरूरत
स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब सलाह जारी की है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कोई भी कफ सिरप न दिया जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों में खांसी और सर्दी के लक्षण सामान्य होते हैं और अधिकतर मामलों में बिना दवा के ठीक हो जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह बच्चों के लिए दवा नीति को पुनः परिभाषित करे और गैर-फार्मास्युटिकल उपायों को प्राथमिकता दे जैसे—गुनगुना पानी, भाप, और आराम। साथ ही, डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया जाए कि वे बच्चों को दवा देने से पहले पूरी जांच करें।
सरकारी योजनाओं की जवाबदेही और पारदर्शिता
राजस्थान की मुफ्त दवा योजना का उद्देश्य गरीब और जरूरतमंदों को स्वास्थ्य सुविधा देना है, लेकिन हालिया घटनाएं इस योजना की पारदर्शिता पर सवाल उठा रही हैं। दवा की खरीद, भंडारण और वितरण में गुणवत्ता नियंत्रण की कमी सामने आई है। सरकार को चाहिए कि वह दवा कंपनियों की पृष्ठभूमि की जांच करे और केवल GMP (गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस) प्रमाणित उत्पादों को ही अनुमति दे। साथ ही, एक स्वतंत्र निगरानी तंत्र बनाया जाए जो समय-समय पर दवाओं की गुणवत्ता की जांच करे।
पीड़ित परिवारों की मांग और सामाजिक प्रतिक्रिया
साया के परिवार समेत अन्य पीड़ित परिवार न्याय की मांग कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई और मुआवजे की मांग की है। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर जन आक्रोश बढ़ रहा है। कई सामाजिक कार्यकर्ता और बाल अधिकार संगठन इस मामले में हस्तक्षेप कर रहे हैं। आम जनता भी अब मुफ्त दवाओं को लेकर सतर्क हो गई है। यह समय है जब सरकार को न केवल जवाब देना चाहिए, बल्कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।