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Home » नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का 80 वर्ष की आयु में निधन। प्रशासनिक हलकों में गहरा शोक

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नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का 80 वर्ष की आयु में निधन। प्रशासनिक हलकों में गहरा शोक

SA News
Last updated: August 16, 2025 1:13 pm
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नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का 80 वर्ष की आयु में निधन। प्रशासनिक हलकों में गहरा शोक
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15 अगस्त 2025 की शाम, चेन्नई के एक निजी अस्पताल से आई खबर ने राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में गहरी शोक लहर पैदा कर दी। नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन, जो बीते कुछ दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ थे, 80 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा हो गए। 8 अगस्त को घर पर अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें आईसीयू में भर्ती कराया गया था। ऑपरेशन के बावजूद स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो पाया और शाम 6:23 बजे उनका निधन हो गया। यह पहला अवसर है जब नगालैंड के किसी राज्यपाल का कार्यकाल के दौरान ही निधन हुआ।

Contents
नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का जन्म और जीवननगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का राजनीतिक सफरनगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन को श्रद्धांजलियांनगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन की विरासत

नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का जन्म और जीवन

16 फरवरी 1945 को तंजावुर (तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी) में जन्मे ला. गणेशन ने बचपन में ही जीवन की कठिनाइयों का सामना किया। नौ वर्ष की आयु में पिता के निधन ने उन्हें समय से पहले जिम्मेदारियों में धकेल दिया। एसएसएलसी परीक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने राजस्व विभाग में नौकरी शुरू की, लेकिन नौ साल बाद सरकारी सेवा छोड़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। अविवाहित जीवन जीते हुए उन्होंने अपना पूरा समय और ऊर्जा संगठन तथा जनसेवा में लगा दी।

नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन का राजनीतिक सफर

ला. गणेशन का राजनीतिक जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं से शुरू होकर संवैधानिक पदों तक पहुंचा। 1970 के दशक में उन्होंने आरएसएस (RSS) के प्रचारक के रूप में तमिलनाडु के अलग-अलग जिलों में संगठन का विस्तार किया। 1975 के आपातकाल के दौरान लोकतंत्र बहाली की मुहिम में सक्रिय भूमिका निभाई। मीनाक्षीपुरम धर्मांतरण विवाद और मण्डैक्काडु साम्प्रदायिक तनाव में मध्यस्थता जैसी संवेदनशील जिम्मेदारियां उन्होंने संभालीं।

1991 में वे भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़े और तमिलनाडु में पार्टी के संगठन को मजबूत करने में अग्रणी भूमिका निभाई। राज्य महासचिव और उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने कई चुनाव अभियानों का नेतृत्व किया। 2006 से 2009 तक तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल पार्टी की रणनीतिक मजबूती के लिए याद किया जाता है।

2016 में वे मध्य प्रदेश से राज्यसभा पहुंचे, जहां संसदीय समितियों में प्रशासन, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे विषयों पर उन्होंने अपनी सक्रियता दर्ज कराई। दो बार लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने किस्मत आजमाई, हालांकि सफलता नहीं मिली।

22 अगस्त 2021 को वे मणिपुर के राज्यपाल नियुक्त हुए। यहां कोविड-19 टीकाकरण अभियान, धार्मिक नेताओं से संवाद और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखने के प्रयासों में वे सक्रिय रहे। 18 जुलाई 2022 से 11 नवंबर 2022 तक उन्होंने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला। 12 फरवरी 2023 को उन्हें नगालैंड का 19वां राज्यपाल नियुक्त किया गया और 20 फरवरी को उन्होंने पदभार ग्रहण किया। नागालैंड में उनका कार्यकाल प्रशासनिक स्थिरता, केंद्र-राज्य समन्वय और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने के लिए जाना गया।

नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन को श्रद्धांजलियां

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें “एक समर्पित राष्ट्रभक्त” बताया, जिन्होंने तमिलनाडु में भाजपा के विस्तार और तमिल संस्कृति के संवर्धन में विशेष योगदान दिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि उनका कार्य और योगदान देश को लंबे समय तक याद रहेगा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने उन्हें राजनीतिक शिष्टाचार और सम्मान की मिसाल बताया। एआईएडीएमके नेता एडप्पाड़ी के. पलानीस्वामी, केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने भी शोक संवेदनाएं व्यक्त कीं।

नगालैंड के राज्यपाल ला. गणेशन की विरासत

ला. गणेशन का जीवन और करियर अनुशासन, वैचारिक प्रतिबद्धता और सार्वजनिक सेवा का जीवंत उदाहरण रहा। आरएसएस के प्रचारक से लेकर भाजपा के संगठनात्मक स्तंभ और तीन राज्यों के राज्यपाल बनने तक, उन्होंने हमेशा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं से ऊपर जनहित को रखा। तमिल साहित्य और संस्कृति के प्रसार के लिए उन्होंने “पोट्तरमाराई” जैसी संस्थाओं को बढ़ावा दिया।

मणिपुर, पश्चिम बंगाल और नगालैंड में राज्यपाल रहते हुए उन्होंने संवैधानिक गरिमा, प्रशासनिक संतुलन और संवाद-प्रधान कार्यशैली को बनाए रखा। नगालैंड में उनके निधन ने न केवल एक संवैधानिक पदाधिकारी का अंत किया, बल्कि ऐसे नेता की कमी भी पैदा कर दी जिसकी पहचान सादगी, संयम और सहमति निर्माण में थी।

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