हिंदू धर्म में सावन मास को पवित्र माना जाता है, और इस दौरान कई श्रद्धालु व्रत रखते हुए मांस-मछली का सेवन त्यागते हैं। लेकिन सावन समाप्त होते ही — विशेषकर जब यह मलमास सहित दो माह का होता है — बिहार में नॉनवेज का बाजार अचानक गर्म हो जाता है। ब्लॉग में इस घटना की पृष्ठभूमि, प्रभाव, और व्यावसायिक आंकड़ों का विश्लेषण प्रस्तुत है।
सावन समाप्ति के बाद नॉनवेज बाजार में उछाल
- सावन समाप्त होते ही पटना, मुजफ्फरपुर, मुंगेर, गोपालगंज जैसे शहरों में मीट, मछली, चिकन की दुकानों पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी ।
- मुजफ्फरपुर में खरीददारों को अपनी बारी तक आधे घंटे का इंतजार करना पड़ा ।
- मुंगेर में कतारें लगी रहीं और बिक्री सामान्य दिनों से 70% अधिक दर्ज की गई ।
बिक्री का अनुमानित आर्थिक आंकड़ा
- मुजफ्फरपुर में ₹10 करोड़ का कारोबार
अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, केवल मुजफ्फरपुर में सावन समाप्ति के पहले दिन ही लगभग ₹10 करोड़ बराबर की मांस-मछली-चिकन की बिक्री हुई । - बिहार में कुल मिलाकर करोड़ों की बिक्री
भागलपुर, गोपालगंज समेत अन्य इलाकों में भी ऐसा ही बाजार उछाल देखने को मिला और पूरे प्रदेश में करोड़ों रुपये के कारोबार का अनुमान लगाया गया ।
परमात्मा का अटल विधान है कि गलत तरीकों से कमाया गया धन, जैसे मांस, शराब या अन्य पापपूर्ण वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त पैसा, कभी स्थायी लाभ नहीं देता। ऐसा धन व्यक्ति को और अधिक गहरे नरक की ओर ले जाता है। यह पैसा अंततः किसी न किसी आपदा, बीमारी, कोर्ट-कचहरी या कष्ट में खर्च हो जाता है और आत्मा को जन्म-जन्मांतर के दुखों में डाल देता है। संतों ने कहा है कि पवित्र कमाई से ही जीवन में सुख और शांति संभव है, और सच्ची भक्ति ही हमें ऐसे पाप से बचाकर मोक्ष का मार्ग दिखाती है।
सांस्कृतिक दृष्टिकोण और सावन का प्रभाव
- सावन मास में बिहार के कई हिस्सों में नॉनवेज की मांग घट जाती है, इसके बदले पनीर और मशरूम जैसे विकल्प की मांग में वृद्धि होती है ।
इस प्रकार, सावन समाप्ति के साथ ही अचानक डिमांड बढ़ जाना समाज के ज्ञानहीनता को दर्शाता है। - हाल ही में, बिहार विधानसभा में भी नॉनवेज परोसने को लेकर राजनीतिक बहस भी हुई है, जो इस मुद्दे की संवेदनशीलता को दर्शाता है ।
सिर्फ सावन में मांस त्यागना क्यों है पाखंड?
अधिकतर लोग सावन के महीने में मांस का सेवन छोड़ देते हैं, यह सोचकर कि भगवान शिव का पवित्र माह हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि परमात्मा हर पल, हर सेकंड हमारी गतिविधियों पर नज़र रखते हैं। यदि आप सच में ईश्वर-भक्त हैं, तो सालभर मांस का त्याग करना ही सच्ची धार्मिकता है।
शास्त्रों के अनुसार मांस सेवन का परिणाम
परमात्मा के विधान में मांसाहार एक घोर पाप है जो कि गरुण पुराण आदि शास्त्रों में वर्णित है। इसके परिणामस्वरूप जीवन में अनेक विपत्तियाँ आती हैं—जैसे सड़क दुर्घटनाएं, अंग भंग होना, आदि। इतना ही नहीं, मृत्यु के बाद भी मांस खाने वाला जीव घोर नरक में जाता है और यमदूतों से भयंकर यातनाएं सहता है।
मोक्ष और सांसारिक सुख – दोनों का लाभ
सिर्फ बाहरी आडंबर से बचना पर्याप्त नहीं है। संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा दी जा रही शास्त्र-अनुकूल भक्ति अपनाने से ही हम पापों से बच सकते हैं। यह भक्ति न केवल हमें भविष्य में आने वाली दुर्घटनाओं से सुरक्षा देती है, बल्कि मोक्ष की प्राप्ति भी कराती है।
संत रामपाल जी महाराज की सतभक्ति से व्यक्ति को जीवन में शांति, सुख और सुरक्षा मिलती है। और मृत्यु के बाद परमात्मा के दरबार में एक श्रेष्ठ स्थान प्राप्त होता है—जहाँ जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।
मांसाहार: एक घोर पाप जो ले जाता है नरक की ओर
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों में जीव हत्या को पाप बताया गया है। मांस खाना केवल एक जीव का मांस खाना नहीं, बल्कि उस निर्दोष प्राणी के जीवन को छीनना है, जिसे परमात्मा ने भी हमारी तरह सांस और जीवन दिया है।
वेद, बाइबिल, कुरान और गुरु ग्रंथ साहिब सभी स्पष्ट करते हैं कि हत्या और हिंसा करने वाला आत्मा पर भारी पाप लादता है। मांस खाने वाले व्यक्ति का मन क्रूर, हिंसक और असंवेदनशील बनता है, और यह पाप उसे मृत्यु के बाद नरक के गहरे कष्ट में ले जाता है।
संत रामपाल जी महाराज जो शास्त्रों को खोलकर दिखाते हैं कि मांसाहार से आत्मा का पतन होता है, और जो जीव हत्या कर अपने पेट की भूख मिटाते हैं, वे अगले जन्मों में भयंकर यातनाएं भुगतते हैं।
कबीर साहिब चेतावनी देते हैं:
“मांस, मांस सब एक हैं, मुर्गी, हिरनी, गाय।
आंख से देख नर खाते हैं, ते नर नरक में जाय॥”
भावार्थ यह है कि चाहे वह कोई भी प्राणी हो — सभी का मांस और रक्त एक जैसा है, और सभी परमात्मा की संतान हैं। फिर भी जो मनुष्य अपनी आंखों से देख कर उनकी हत्या करते हैं और मांस खाते हैं, वे निश्चित रूप से नरक में जाते हैं।
मांसाहार केवल शरीर का पाप नहीं, यह आत्मा की हत्या के समान है। यह वाणी हमें चेताती है कि जीव हत्या केवल भोजन की आदत नहीं, बल्कि परम पाप है जो आत्मा को अधोगति की ओर ले जाता है। यदि हम वास्तव में मोक्ष और शांति चाहते हैं, तो हमें तुरंत मांसाहार त्यागकर सतभक्ति के मार्ग पर चलना होगा, जैसा कि संत रामपाल जी महाराज सच्चे शास्त्रानुसार बताते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. क्या मांस खाना पाप है?
हाँ, सभी प्रमुख धर्मग्रंथों में जीव हत्या और मांसाहार को पाप बताया गया है, क्योंकि यह निर्दोष प्राणियों की जान लेने के बराबर है।
2. मांस खाने वाले को नरक क्यों मिलता है?
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जीव हत्या करने वाला मृत्यु के बाद भयंकर यातनाएं भोगता है और नरक में जाता है, क्योंकि उसने परमात्मा की संतान की हत्या की।
3. कबीर साहिब ने मांसाहार के बारे में क्या कहा है?
कबीर साहिब ने कहा — “मांस, मांस सब एक हैं, मुर्गी, हिरनी, गाय। आंख से देख नर खाते हैं, ते नर नरक में जाय॥” — भावार्थ: सभी जीव परमात्मा की संतान हैं, उन्हें मारना घोर पाप है।
4. क्या संत रामपाल जी महाराज मांसाहार के खिलाफ हैं?
हाँ, संत रामपाल जी महाराज शास्त्रों के प्रमाण से बताते हैं कि मांसाहार आत्मा को पतन की ओर ले जाता है और मोक्ष के मार्ग को बंद कर देता है।
5. मांसाहार छोड़ने का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
मांसाहार छोड़ने से पाप से बचा जा सकता है जिससे मनुष्य भविष्य में दंडित नहीं होता, आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है।