बिहार के सीतामढ़ी जिले में पुनौरा धाम नामक स्थान पर शुक्रवार को जानकी मंदिर के निर्माण का शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। शिलान्यास कार्यक्रम दोपहर 3 बजे के आसपास शुरू हुआ।
67 एकड़ में मंदिर परिसर, बजट 883 करोड़
मंदिर का निर्माण कार्य कुल 67 एकड़ भूमि पर किया जाएगा और इसके लिए 883 करोड़ रुपये का बजट तय किया गया है। बिहार सरकार ने इस परियोजना को लेकर वित्तीय स्वीकृति प्रदान कर दी है। दावा किया गया है कि यह मंदिर अयोध्या की तर्ज पर विकसित किया जाएगा।
मंदिर निर्माण पर 883 करोड़ का बजट
इस परियोजना पर बिहार सरकार द्वारा 883 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई है। मंदिर का निर्माण कार्य आगामी तीन वर्षों में पूरा किया जाएगा। यह मंदिर अयोध्या के राम मंदिर की शैली पर आधारित होगा और इसका कुल क्षेत्रफल 67 एकड़ में फैला होगा।
पर्यटन और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकास
मंदिर परिसर में केवल धार्मिक गतिविधियाँ ही नहीं, बल्कि पर्यटन, शिक्षा और संस्कृति को भी बढ़ावा देने वाले अनेक स्थल बनाए जाएंगे। इनमें संग्रहालय, ऑडिटोरियम, यज्ञ मंडप, धर्मशाला, बच्चों के लिए खेल क्षेत्र, भजन संध्या स्थल, मिथिला हाट, ई-कार्ट स्टेशन और पार्किंग स्थल शामिल होंगे। साथ ही 50 एकड़ अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण 165.57 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है।
देशभर से जुटे संत और श्रद्धालु
इस आयोजन में अयोध्या, काशी, जनकपुर और दक्षिण भारत से आए संतों की विशेष उपस्थिति रही। अयोध्या के प्रमुख मंदिरों के महंत, जनकपुर के जानकी मंदिर के आचार्य आदि शामिल हुए।
तैयार कार्यक्रम अनुसार आयोजन
तय कार्यक्रम के अनुसार गृह मंत्री अमित शाह दोपहर 2:40 बजे पुनौरा धाम पहुंचे और पूजा-अर्चना के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भूमि पूजन किया। इस अवसर पर नेपाल के जनकपुर और देश के अन्य हिस्सों से साधु-संत भी आमंत्रित किए गए थे।
सामाजिक और धार्मिक समूहों की भागीदारी
इस आयोजन में विभिन्न धार्मिक संस्थानों, संतों, महंतों और राजनीतिक नेताओं की सहभागिता रही। अयोध्या, काशी और जनकपुर जैसे स्थानों से आए प्रतिनिधि भी इसमें शामिल हुए। पूरे इलाके को सजाया गया था, जिससे स्थानीय लोग इसे एक भव्य आयोजन के रूप में देख रहे थे।
तथ्यात्मक दृष्टिकोण और निष्पक्ष जानकारी
इस खबर को किसी धार्मिक मान्यता या परंपरा के समर्थन या विरोध में देखे बिना, इसे एक सार्वजनिक परियोजना के रूप में समझना ज़रूरी है। सामाजिक रूप से विभिन्न विचारधाराओं के लोग हैं—कुछ लोग इस तरह के निर्माणों को सांस्कृतिक विरासत मानते हैं, जबकि अन्य इसे मूर्ति पूजा और अंधविश्वास से जोड़ते हैं।
लोकतांत्रिक समाज में विविध दृष्टिकोण आवश्यक
इस आयोजन को केवल एक धार्मिक कार्यक्रम मानने की बजाय इसे एक सामाजिक घटना के रूप में देखा जा सकता है, जो विभिन्न विचारों के बीच संवाद का अवसर भी हो सकता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति अपने विश्वास, विचार और दृष्टिकोण को बिना दबाव के रख सके।
निष्कर्ष
हर समाज और समुदाय अपनी आस्था और परंपराओं में गहराई से जुड़ा होता है, और यह भावनाएं सम्मान की पात्र होती हैं। धार्मिक स्थलों का निर्माण सांस्कृतिक पहचान को सहेजने का प्रयास होता है। लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि हम अपने विश्वासों की गहराई में जाकर यह समझें कि क्या हमारे पूजापाठ और परंपराएं वास्तव में शास्त्रों के अनुरूप हैं?
Sant Rampal Ji Maharaj जी का संदेश यही है — “भक्ति भावनाओं से नहीं, प्रमाणों से करें।” उन्होंने वेद, गीता और पुराणों के आधार पर स्पष्ट किया है कि सच्चा धर्म वही है, जो शास्त्रसम्मत हो। उनका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं, बल्कि सच्चे ज्ञान से जोड़ना है, जिससे भक्ति का लाभ पूर्ण रूप से मिल सके।
यदि आप भी अपने जीवन की आध्यात्मिक दिशा को स्पष्ट करना चाहते हैं, तो Sant Rampal Ji Maharaj जी के सतज्ञान को एक बार जरूर जानें। यह ज्ञान आपको अंधविश्वास से ऊपर उठाकर सच्चे मोक्ष की ओर ले जा सकता है।